हुस्न का क्या काम सच्ची मोहब्बत में, रंग सांवला भी हो तो यार क़ातिल लगता है.,
तेरे हुस्न पर लिखूं में क्या तारीफ मेरी जान, वो लफ्ज़ ही नहीं, जो तेरा हुस्न को बयां कर सकें.,
तुझको देखा तो फिर उसको ना देखा, चाँद कहता रह गया, मैं चाँद हूँ मैं चाँद हूँ.,
प्यारी सी तेरी स्माइल मीठी सी तेरी वॉइस, जल जाते है लोग देख कर मेरी चॉइस.,
आज उसकी मासूमियत के कायल हो गए, सिर्फ उसकी एक नजर से ही घायल हो गए.,
उनके हुस्न का आलम न पूछिये, बस तस्वीर हो गया हूँ, तस्वीर देखकर.,
एक लाइन में क्या तेरी तारीफ लिखू, पानी भी जो देखे तुझे तो, प्यासा हो जाये.,
मुझको मालूम नहीं हुस्न की तारीफ़, मेरी नजरों में हसीन वो है जो तुम-सा है.,
तुम्हारी क्या तारीफ करू सुनो तुम मुझे, बिना रीजन और हर रीजन अच्छी लगती हो.,
बड़ी फुर्सत से बनाया है तेरे खुदा ने तुझे, वरना सूरत तेरी इस कदर ना चाँद से मिलती.,
बहुत शौक है न तुम्हे मुझे मार डालने का, लगा कर ज़हर होठो पे मेरी बाँहों में आ जाओ.,
ख्वाहिश ये ना रखें कि तारीफ हर कोई करे, कोशिश यही करे कि बस कोई बुरा ना कहे.,
रात भर करता रहा तेरी तारीफ चाँद से, चाँद इतना जला कि सुबह तक सूरज हो गया.,
तारीफ अपने आप की करना फिजूल है, खुशबू खुद बता देती है कौन सा फूल है.,
जिसे लिखते हुए मुझे तकलीफ़ बहुत होती है, मेरे उस शेर की, तारीफ़ बहुत होती है.,
तुझको चाहा तो मोहब्बत की समझ आयी मुझे, वरना इस लफ्ज़ की तारीफ सुना करते थे.,
उसके चेहरे की चमक के सामने सब सादा लगा, आसमान पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा.,
इस डर से कभी गौर से देखा नहीं तुझको, कहते हैं कि लग जाती है अपनों की नज़र भी.,
कुछ फिजायें रंगीन हैं, कुछ आप हसीन हैं, तारीफ करूँ या चुप रहूँ जुर्म दोनो संगीन हैं.,
नींद से क्या शिकवा करूं मैं जो रात भर आती नहीं, कसूर तो उस चेहरे का है जो रात भर सोने नही देता !
अब क्या लिखूं तेरी तारीफ में मेरे हमदम, अलफाज कम पड़ जाते है तेरी मासूमियत देखकर !
अल्फाज खुशी दे रहे थे मुझे और, वो मेरे इश्क की तारीफ कर रही थी !!
देख कर खूबसूरती आपकी चांद भी शर्मा रहा है, तू कितनी खूबसूरत है यही फरमा रहा है !
मैं तुम्हारी सादगी की क्या मिसाल दूँ इस सारे जहां में बे-मिसाल हो तुम !
कैसी थी वो रात कुछ कह सकता नहीं मैं, चाहूँ कहना तो बयां कर सकता नहीं मैं !
मेरे दिल के धड़कनों की वो जरूरत सी है, तितलियों सी नाजुक परियों जैसी खूबसूरत सी है !
वो हाल मेरा पूछने आये जरूर थे मगर, अपनी निगाहों में वही पुराना गुरूर लिए हुए।
रात भर करता रहा तेरी तारीफ चाँद से, चाँद इतना जला कि सुबह तक सूरज हो गया !
और भी इस जहां में आएंगे आशिक कितने, उनकी आंखों को तुमको देखने की हसरत रहे !
तू बेमिसाल है तेरी क्या मिसाल दूं ! आसमां से आई है, यही कह के टाल दूं !
रोज इक ताजा शेर कहाँ तक लिखूं तेरे लिए, तुझमें तो रोज ही एक नई बात हुआ करती है !
तू भी मेरे दिल के Library की वो डायरी है, जिसे हम पढ़ना कम और देखना, ज्यादा पसंद करता है ।
तारीफ क्या करू में तुम्हारी क्यूंकि, तुम्हीं एक तारीफ हो !
बेवफाई की तारीफ मैं क्या करूं ! वो जहर भी हमें किस्तों में देते रहे !
यह तेरा हुस्न और ये अदाएं तेरी, मार जाते हैं इन्हें देख मुहल्ले के सारे आशिक, उतर आते है ।
तेरे हुस्न का दीवाना तो हर कोई होगा, लेकिन मेरे जैसी दीवानगी हर किसी में नहीं होगी !
अजब तेरी है ऐ महबूब सूरत ! नजर से गिर गए सब खूबसूरत !
लोग मेरी शायरी की तारीफ कर रहे है ! लगता है दर्द अच्छा लिखने लगी हूं मैं !
ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है, उसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है !!
देख कर तेरी आँखो को मदहोश मैं हो जाता हूँ ! तेरी तारीफ किये बिना मैं रह नहीं पाता हूँ !
चाँद की चमक भी फीकी लगती हैं, तू परियों से ज्यादा खूबसूरत दिखती है.,
वो घर से बन संवर कर, जब कभी निकलते है उनसे रौशनी लेकर सौ चिराग जलते है.,
रोज इक ताज़ा शेर कहाँ तक लिखूं तेरे लिए,तुझमें तो रोज ही एक नई बात हुआ करती है।
ढाया है खुदा ने ज़ुल्म हम दोनों पर,तुम्हें हुस्न देकर मुझे इश्क़ देकर।
क्या लिखूं तेरी तारीफ-ए-सूरत में यार,अलफ़ाज़ कम पड़ रहे हैं तेरी मासूमियत देखकर।
कुछ फिजायें रंगीन हैं, कुछ आप हसीन हैं,तारीफ करूँ या चुप रहूँ जुर्म दोनो संगीन हैं।
तू जरा सी कम खूबसूरत होतीतो भी बहुत खूबसूरत होती.
होश-ए-हवास पे काबू तो कर लिया मैंने,उन्हें देख के फिर होश खो गए तो क्या होगा।
मैं तुम्हारी सादगी की क्या मिसाल दूँइस सारे जहां में बे-मिसाल हो तुम।
आज उसकी मासूमियत के कायल हो गए,सिर्फ उसकी एक नजर से ही घायल हो गए।
और भी इस जहां में आएंगे आशिक कितने,उनकी आंखों को तुमको देखने की हसरत रहे।
हुस्न वालों को संवरने की क्या जरूरत है,वो तो सादगी में भी क़यामत की अदा रखते हैं।
रुख से पर्दा हटा तो, हुस्न बेनकाब हो गया,उनसे मिली नज़र तो, दिल बेकरार हो गया।
इस जहां में तेरा हुस्न मेरी जां सलामत रहे,सदियों तक इस जमीं पे तेरी कयामत रहे।
तेरी खाई हुई मेरे सर की झूठी कसमें,अब मुझे अक्सर बीमार रखती हैं
उसके हुस्न से मिली है मेरे इश्क को ये शौहरत,मुझे जानता ही कौन था तेरी आशिक़ी से पहले।
हैं होंठ उसके किताबों में लिखी तहरीरों जैसे,ऊँगली रखो तो आगे पढ़ने को जी करता है।
वो मुझसे रोज़ कहती थी मुझे तुम चाँद ला कर दो,उसे एक आईना दे कर अकेला छोड़ आया हूँ।
तुझको देखा… तो फिर… उसको ना देखा,चाँद कहता रह गया, मैं चाँद हूँ मैं चाँद हूँ।
वह मुझसे रोज कहती थी,मुझे तुम चांद ला कर दो.उसे एक आईना देकर,अकेला छोड़ आया हूं.
कसा हुआ तीर हुस्न का, ज़रा संभल के रहियेगा,नजर नजर को मारेगी, तो क़ातिल हमें ना कहियेगा।
उफ्फ ये नज़ाकत ये शोखियाँ ये तकल्लुफ़,कहीं तू उर्दू का कोई हसीन लफ्ज़ तो नहीं।
ये बात, ये तबस्सुम, ये नाज, ये निगाहें,आखिर तुम्हीं बताओ क्यों कर न तुमको चाहें।
उनके हुस्न का आलम न पूछिये,बस तस्वीर हो गया हूँ, तस्वीर देखकर।
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदालड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।
हम तो फना हो गए उनकी आँखे देखकर,ना जाने वो आइना कैसे देखते होंगे।
जंगली जड़ी बूटी सी मैं दोस्तों,किसी को जहर, किसी को दवा सी लगती हूं.
ये उड़ती ज़ुल्फें और ये बिखरी मुस्कान,एक अदा से संभलूँ तो दूसरी होश उड़ा देती है।
न देखना कभी आईना भूल कर देखोतुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा।
आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन,मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है।
हम पर यूँ बार बार इश्क का इल्जाम न लगाया कर,कभी खुद से भी पूंछा है इतनी खूबसूरत क्यों हो
तेरा अंदाज़-ए-सँवरना भी क्या कमाल है,तुझे देखूं तो दिल धड़के ना देखूं तो बेचैन रहूँ।
हुस्न का क्या काम सच्ची मोहब्बत में.रंग सांवला भी हो तो यार कातिल लगता है.
हर कोई भीड़ में, शामिल होना चाहता हैपर वो इंसान थोडा अलग है,जो अकेला चलना जानता है
तलब उठती है बार-बार तेरे दीदार की,ना जाने देखते-देखते कब तुम लत बन गये।
मुझे दुनिया की ईदों से भला क्या वास्ता यारो,हमारा चाँद दिख जाये हमारी ईद हो जाये।
एक लाइन में क्या तेरी तारीफ लिखूँ,पानी भी जो देखे तुझे तो, प्यासा हो जाये।
माँ-बाप की खुशियों की क़द्र करनावो कुछ बोल भी दे, तो ज़रा सब्र करना।
चाल मस्त, नजर मस्त, अदा में मस्ती,जब वह आते हैं लूटे हुए मैखाने को।
ऐसा ना हो तुझको भी दीवाना बना डाले,तन्हाई में खुद अपनी तस्वीर न देखा कर।
अपनी इन नशीली आंखों को,जरा झुका दीजिए मोहतरमा,मेरे मजहब में नशा हराम है
ये कह सितमगर ने ज़ुल्फ़ों को झटका,बहुत दिन से दुनिया परेशाँ नहीं है।
बचपन में सोचता था चाँद को छू लूँ,आपको देखा वो ख्वाहिश जाती रही।
हमारा क़त्ल करने की उनकी साजिश तो देखो,गुजरे जब करीब से तो चेहरे से पर्दा हटा लिया
कैसे बयान करें सादगी अपने महबूब की,पर्दा हमीं से था मगर नजर भी हमीं पे थी।
मैं अपना चेहरा भी उनकी आंखों में देखना चाहता हूं खूबसूरती की वो मूरत है मैं उन्हे बहुत चाहता हूं .!!
तू बेमिसाल है, तेरी क्या मिसाल दूं आसमां से आई है, यही कह के टाल दूं ।
ख़ूबसूरत हो इसलिए मोहब्बत नहीं है, मोहब्बत है इसलिए ख़ूबसूरत लगती हो।
हुस्न दिखा कर भला कब हुई है मोहब्बत,वो तो काजल लगा कर हमारी जान ले गयी।
सफाईयां देनी छोड़ दी हैमैं बहुत बुरी हूं सीधी सी बात है.
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए,हाय ज़ालिम तेरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए।
कमसिनी का हुस्न था वो… ये जवानी की बहार,पहले भी तिल था रुख पर मगर क़ातिल न था।
जलवों की साजिशों को न रखो हिजाब में,ये बिजलियाँ हैं रुक न सकेंगीं नक़ाब में।
नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं रात भर,कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नहीं देता।
खूबसूरती भी क्या चीज हैवल्लाह यकीन सा आ जाता हैखुद को देख कर.
बड़ी आरज़ू थी मोहब्बत को बेनकाब देखने की,दुपट्टा जो सरका तो जुल्फें दीवार बन गयीं।
नहीं भाता अब तेरे सिवा किसी और का चेहरा,तुझे देखना और देखते रहना दस्तूर बन गया है
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