
बचपन से जवानी के सफर में, कुछ ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते हैं.. तब रोते-रोते हँस पड़ते थे, अब हँसते-हँसते रो पड़ते हैं।

ऐ जिंदगी तू ले चल मुझे, बचपन के उस गलियारे में, जहाँ मिलती थी हमें खुशियाँ, गुड्डे-गुड़ियों के ब्याह रचाने में।
बचपन से जवानी के सफर में, कुछ ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते हैं.. तब रोते-रोते हँस पड़ते थे, अब हँसते-हँसते रो पड़ते हैं।
ऐ जिंदगी तू ले चल मुझे, बचपन के उस गलियारे में, जहाँ मिलती थी हमें खुशियाँ, गुड्डे-गुड़ियों के ब्याह रचाने में।