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बहुत खूबसूरत था, महसूस ही नहीं हुआ, कब कहां और कैसे चला गया बचपन मेरा।
उम्र के साथ ज्यादा कुछ नहीं बदलता, बस बचपन की ज़िद्द समझौतों में बदल जाती है।
जी लेने दो ये लम्हे इन नन्हे कदमों को, उम्र भर दौड़ना है इन्हें बचपन बीत जाने के बाद।
भटक जाता हूँ अक्सर खुद हीं खुद में, खोजने वो बचपन जो कहीं खो गया है।
करता रहूं बचपन वाली नादानियां उम्र भर, ना जाने क्यों दुनिया वाले उम्र बता देते है।
सपनों की दुनियाँ से तबादला हकीकत में हो गया, यक़ीनन बचपन से पहले उसका बचपना खो गया।
फिर से नज़र आएंगे किसी और में हमारे ये पल सारे, बचपन के सुनहरे दिन सारे।
बचपन से पचपन तक का सफ़र यूं बीत गया साहब, वक़्त के जोड़ घटाने में सांसे गिनने की फुरसत न मिली।
वो शरारत,वो मस्ती का दौर था, वो बचपन का मज़ा ही कुछ और था।
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