मुझसे दूरियाँ बनाकर तो देखो, फिर पता चलेगा कितना नज़दीक हूँ मैं।
दूरियाँ बढ़ी तो दिल से भी दूर जाने लगे, अब तो वो हाल-ए-दिल बताने में भी कतराने लगे ।
इतनी दूरियाँ ना बढ़ाओ थोड़ा सा याद ही कर लिया करो, कहीं ऐसा ना हो कि तुम-बिन जीने की आदत सी हो जाए।
कौन कहता है कि दूरियाँ, मिलों में नापी जाती हैं, कभी खुद से मिलने में भी उम्र गुज़र जाती है।
कैसे बनाऊँ तेरी यादों से दूरियाँ दो कदम जाकर सौ कदम लौट आती हूँ।
कभी कभी मिटते नही, चंद लम्हों के फांसले, एहसास अगर जिन्दा हो, मिट जाती हैं दूरियाँ।
दूरियाँ जब भी बढ़ी तो गलतफहमियां भी बढ़ गयी, फिर तुमने वो भी सुना जो मैंने कहा ही नही।
तेरा मेरा दिल का रिश्ता भी अजीब है, मीलों की दूरियां है और धड़कन करीब है।
खुद के लिए इक सजा मुकर्र कर ली मैंने,तेरी खुशियों की खातिर तुझसे दूरियां चुन ली मैंने।
मोहब्बत में फासले भी जरूरी है साहब, जितनी दूरी उतना ही गहरा रंग चढ़ता है।
कभी पत्ते कभी तिनके कभी खुश्बू उड़ा लाई,हमारे पास तो आँधी भी कभी तन्हा नहीं आई….
माना की दूरियां कुछ बढ़ सी गई है लेकिन, तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजरता है
दूरियां अच्छी लगने लगी है अब मुझे, जबरदस्ती के प्यार से अब मन थक चूका है।
तू मुझसे दूरियाँ बढ़ाने का शौक पूरा कर, मेरी भी जिद है तुझे हर दुआ में मागुँगा।
मन की दूरियां कुछ बढ़ सी गयी हैं लेकिन तेरे हिस्से का वक़्त आज भी तनहा गुजरता है।
हर आशिक अपने महबूब के साथ होता, परिंदा बनना अगर इंसान के हाथ होता.
सबूतो की ज़रूरत पड़ रही है, यानी रिश्तों मे दूरी बढ़ रही है
खुद के लिए एक सज़ा चुन ली मैंने.. तेरी खुशियों की खातिर तुझसे दूरियां चुन ली मैने।
बोहोत खुश नसीब हूँ मै क्यूंकि, तेरे सबसे ज़्यादा क़रीब हु मै।
दूरियों का ग़म नहीं अगर फ़ासले दिल में न हो… नज़दीकियां बेकार है अगर जगह दिल में ना हो…
वो क़रीब बहुत है, मगर दूरियों के साथ… हम दोनों जी तो रहे हैं!! मगर मजबूरियों के साथ!!…
दूर हो या पास हो, तुम हमेशा खास हो
आलम बेवफाई का कुछ इस कदर बढ़ गया, फासला तय होता रहा और दूरियां बढ़ती गई।
ये दूरियां कहां मायने रखती इश्क में “साहिबा” , दिल-ए-मुस्कुराहट के लिए तेरी याद ही काफी है।
अब तो कुछ दिनों का मेहमान बनकर आता है साथी पुरानी यादें ताजा कर फिर तन्हा कर जाता है साथी
फासला रख के भी क्या हासिल हुआ, आज भी मैं उसका ही कहलाता हूँ!!
मुझसे दूरियाँ बनाकर तो देखो, फिर पता चलेगा कितना नज़दीक हूँ मैं।
आलम बेवफाई का कुछ इस कदर बढ़ गया, फासला तय होता रहा और दूरियां बढ़ती गई।
तू मुझसे दूरियाँ बढ़ाने का शौक पूरा कर, मेरी भी जिद है तुझे हर दुआ में मागुँगा।
दूरियां बढ़ना लाज़मी था, प्यार हमारा एकतरफा जो था।
तुझसे दूर रहकर कुछ यूँ वक़्त गुजारा मैंने, ना होंठ हिले फिर भी तुझे पल-पल पुकारा मैंने।
ख़्वाबों में भी ख़्वाब बनकर आते हो, जाना इतनी दूरियां कहा से लाते हो।
मीलों की दूरियां पर धड़कनों के क़रीब हैं, देखिए ना दूर होके भी हम कितने नज़दीक हैं।
दूरी ने कर दिया है तुझे और भी करीब, तेरा ख़याल आ कर न जाये तो क्या करें।
हम बताएंगे भी नहीं जताएंगे भी नहीं, दूरी बना कर रखेगे मिटाएंगे भी नहीं।
कुछ हमें भी बता देते यूं दूरियां न जताते, इल्ज़ाम हज़ारों लगाये, ख़ता भी बता जाते।
दूर ही थे तो अच्छा था,करीब आकर दूरियां बढ़ा दी हमने।
कभी तो आ बैठ मेरे पास थोड़ा बतियाते है,बढ़ रही है जो दूरियां उन दूरियों को मिटाते हैं।
उसकी बेरुखी और मेरी खुदगर्ज़ी, अक्सर दूरियां ले आती हैं।
दोनों के बीच की दूरिया बता रही है आज, कि रिश्ता कितने क़रीब का था दोनों का।
माना की दूरियां कुछ बढ़ सी गई है लेकिन, तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजरता है
रिश्तों में दूरियां कभी इतनी मत बढ़ा लेना, के दरवाज़ा खुला हो फिर भी खटखटाना पड़े।
दूरियां अच्छी लगने लगी है अब मुझे, जबरदस्ती के प्यार से अब मन थक चूका है।
वज़ह को मिटा दो दूरियां करो ख़तम, यहां दिल के रास्ते है खुले, करीब आ जाओ तुम।
हर आशिक अपने महबूब के साथ होता, परिंदा बनना अगर इंसान के हाथ होता.
ये कैसी मजबूरी है?, पास है वो, फिर भी मीलों सी दूरी है।
सबूतो की ज़रूरत पड़ रही है,यानी रिश्तों मे दूरी बढ़ रही है
ये दूरियां ये तन्हाई, ये ग़म-ए-जुदाई,कैसे जिंदा हो तुम, कैसे जी रहे है हम।
बोहोत खुश नसीब हूँ मै क्यूंकि,तेरे सबसे ज़्यादा क़रीब हु मै।
दूरियां खंजर सी चुभ रही हैं,करीबियत की धार कुछ ज्यादा ही है।
दूरियां दिल की होती तो खत्म कर देते, दूरियां तो दिमाग की थी,कैसे खत्म करते।
थोड़ा थोड़ा पास आने से नज़दीकियां बढ़ती हैं, और थोड़ा थोड़ा दूर जाने से दूरियाँ।
जो रिश्ते दिल से बनाए जाते है, वो दूर रहने पर भी दिल के सबसे करीब पाए जाते है।
दूरियों का भी अपना मजा है, दर्द और अहमियत की अच्छी सीख जो दे जाता है।
बोहोत खुश नसीब हूँ मै क्यूंकि, तेरे सबसे ज़्यादा क़रीब हु मै।
ये दूरियां ये तन्हाई, ये ग़म-ए-जुदाई, कैसे जिंदा हो तुम, कैसे जी रहे है हम।
खुद के लिए एक सज़ा चुन ली मैंने.. तेरी खुशियों की खातिर तुझसे दूरियां चुन ला मैने।
सबूतो की ज़रूरत पड़ रही है, यानी रिश्तों मे दूरी बढ़ रही है
ये कैसी मजबूरी है?, पास है वो, फिर भी मीलों सी दूरी है।
हर आशिक अपने महबूब के साथ होता, परिंदा बनना अगर इंसान के हाथ होता.
वज़ह को मिटा दो दूरियां करो ख़तम, यहां दिल के रास्ते है खुले, करीब आ जाओ तुम।
दूरियां अच्छी लगने लगी है अब मुझे, जबरदस्ती के प्यार से अब मन थक चूका है।
रिश्तों में दूरियां कभी इतनी मत बढ़ा लेना, के दरवाज़ा खुला हो फिर भी खटखटाना पड़े।
माना की दूरियां कुछ बढ़ सी गई है लेकिन, तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजरता है
कुछ अनकहे लफ़्ज़ों को कुचलकर निकलती हैं, ये दूरियां भी रोज कातिल बनकर निकलती हैं।
दोनों के बीच की दूरिया बता रही है आज, कि रिश्ता कितने क़रीब का था दोनों का।
हमारे बीच जो ये दूरियां आयी है, कही न कही इन फासलों के पिछे सारे फैसले तुम्हारे ही तो है।।
उसकी बेरुखी और मेरी खुदगर्ज़ी, अक्सर दूरियां ले आती हैं।
कभी तो आ बैठ मेरे पास थोड़ा बतियाते है, बढ़ रही है जो दूरियां उन दूरियों को मिटाते हैं।
दूर ही थे तो अच्छा था, करीब आकर दूरियां बढ़ा दी हमने।
ये दूरियां ना होती हमारे दर्मियां, काश कभी जो सुन लेते तुम मेरी ये खामोशियां।
तेरी तस्वीरों को ही सीने से लगा लेते हैं, दूरियों को हम कुछ इस तरह मिटा लेते हैं।
कुछ हमें भी बता देते यूं दूरियां न जताते, इल्ज़ाम हज़ारों लगाये, ख़ता भी बता जाते।
हम बताएंगे भी नहीं जताएंगे भी नहीं, दूरी बना कर रखेगे मिटाएंगे भी नहीं।
दूरी ने कर दिया है तुझे और भी करीब, तेरा ख़याल आ कर न जाये तो क्या करें।
दूर है सारे मेरे नज़दीकी मुझसे, पराए फिर भी पास आ कर हाथ मिला लेते हैं।
दूरियाँ जब बढ़ी तो, गलतफहमियां भी बढ़ गयी, फिर तुमने वो भी सुना, जो मैंने कहा ही नही।
एक बात कहूँ थोड़ी कड़वी है, दूरी दूर होने से नहीं सहने से बढ़ती है।
मैं हंस रहा हूँ इसका मतलब मैं ठीक तो नहीं, दो लोग जो क़रीब बैठे है इसका मतलब वो दोनों नज़दीक तो नहीं।
दिल भर गया समंदर सूख गया, इस दूरी के दरिया में तेरा मेरा रिश्ता डूब गया।
बीमार तू है तो फिर दवा मुझे क्यों, दूर जाने की गलती तेरी थी फिर आखिर सजा मुझे क्यों।
समझ जा दूरियां कितनी बढ़ गई है हमारे बीच, की अब ये गलतफहमियां हमारे बीच आ गई है।
जानता हूँ तेरे बिन संभल तो नहीं पाऊँगा, पर तुझसे इतना दूर चला जाऊंगा की फिर नज़र नहीं आऊंगा।
सबूतों की ज़रुरत पड़ रही है, यानी रिश्तों में दूरी बढ़ रही है।
नज़दीकी लोगों में नफरत ही नफरत की दिखती है, ये प्यार कम्बख्त दूर दूर तक नज़र नहीं आता।
तुझे क्या बुरा कहूँ मैं खुद बदनसीब हूँ, तुझसे दूर हो कर देख मैं अब मौत के क़रीब हूँ।
अपना एक दिल से चाहने वाला खो कर, अब तो खुश है ना तू मुझसे दूर हो कर।
वाह गज़ब का केहर बनाया है, नज़दीकियों का घर तोड़ कर उन्होंने दूरियों का महल बनाया है।
लेना देना मेरा अब किसी महफ़िल से नहीं, तू बस मेरी नज़र से दूर है दिल से सही।
खुदा का घर ना मिला पर इबादत ना छूटी, तेरा हाथ छूट गया पर तेरी आदत ना छूटी।
मुझे अपनी मजबूरी बता कर, खुश हो ना तुम अब ये दूरी बना कर।
हम भी देख लेंगे जा मेरे दूर जाने के बाद कौन तेरे इतने क़रीब आएगा।
तू नहीं आता पर तेरे ख़्वाब आते है, सोचता हूँ क्या हम भी कभी तुझे याद आते हैं।
चला जायेगा वक़्त ये भी जैसे तुम चले गए हो, दूरियों का दर्द सह नहीं पाओगे देखना लौटकर वापस चले आओगे।
अभी नहीं पर ज़रूर कुछ समय बाद आऊंगा, जैसे तुम आती हो मुझे मैं भी तुम्हे याद आऊंगा।
जुदाई दूरियों से नहीं मन के मतभेद से होती है, जिंदगी अच्छे पैसे से रिश्तो में प्यार बरकरार रखकर जी जाती है।
जब संग बैठना ही नहीं था तो फिर आया ही क्यों, दूर ही जाना था तो क़रीब बुलाया ही क्यों।
दूरियों का ग़म नहीं, अगर फ़ासले दिल में न हो, नज़दीकियां बेकार है, अगर जगह दिल में ना हो,
ये जो फासले हैं, देख ले सब तेरे ही फैसले हैं।
देख कितनी बदनसीब हूँ मैं, तुझसे दूर हो कर दूरियों के क़रीब हूँ मैं।
Welcome to our blog! My name is Yuvraj Kore, and I am a blogger who has been exploring the world of blogging since 2017. It all started back in 2014 when I attended a digital marketing program at college and learned about the intriguing world of blogging.