
वो कहने लगी, नकाब में भी पहचान लेते हो हजारों के बीच? मैंने मुस्करा के कहा, तेरी आँखों से ही शुरू हुआ था इश्क हज़ारों के बीच।

मोहब्बत के सपने दिखाते बहुत हैं, वो रातों में हमको जगाते बहुत हैं, मैं आँखों में काजल लगाऊं तो कैसे, इन आँखों को लोग रुलाते बहुत हैं।

हम भटके हुए एक राही थे दुनिया की अंधेरी राहों मैं, जीने की तमन्ना जाग उठी देखा जो तुम्हारी आँखों मैं जीने का सहारा देके हमें अब दूर हमी से जाते हो, इज़हारे वफा करते – करते क्या बात है क्यों रूक जाते हो।