
रात गुजारी फिर महकती सुबह आई, दिल धड़का फिर तुम्हारी याद आई आँखों ने महसूस किया उस हवा को, जो तुम्हें छु कर हमारे पास आई।

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ एक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।

अपनी आँखों मैं छुपा रखे हैं जुगनू मैंने, अपनी पलकों मैं सजा रखे हैं आँसू मैंने मेरी आँखों को भी बरसात का मौक़ा दे दे सिर्फ एक बार मुलाक़ात का मौक़ा दे दे।

आँखों में ही देखा दिल में उतरकर नहीं देखा, कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा, और पत्थर ही समझते रहे मेरे चाहने वाले, मै मोम था उसने कभी छूकर नहीं देखा।

हम वो है जो आंखो में आंखे डाल के, सच जान लेते हैं, तुझसे मुहब्बत है, बस इसलिये तेरे झूठ भी सच मान लेते है।